शनिवार, 21 नवंबर 2009

सर्वपितरों का श्राद्धपर्व - डॉ. शालिनी

 pitra मनुष्य तीन ऋणों को लेकर जन्म लेता है - देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। देवार्चन से देव ऋण, अध्ययन से ऋषि ऋण एवं पुत्रोत्पादन व श्राद्ध कर्म से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। श्रद्धा से ही श्राद्ध है - श्रद्धया दीयते यत्र तच््रछाद्धं परिचक्षते। श्रद्धापूर्वक पितरों के लिए ब्राrाण भोजन, तिल, जल आदि से तर्पण एवं दान करने से पितृ ऋण से मुक्ति और पितरों की प्रसन्नता मिलती है।
प्रतिवर्ष महालय श्राद्ध का अनुष्ठान कर हम पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं, क्योंकि इस मास में सभी पितर पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने परिवारजन द्वारा प्रदान किए गए कव्य से तृप्त होकर उन्हें शुभाशीष देते हैं। महाभारत के दान-धर्म पर्व के अंतर्गत कहा गया है कि कन्या व सूर्य के मध्य पितृ लोक खाली रहता है और कन्या के सूर्य में पितर अपने सत्पुत्रों के निकट पहुंचते हैं। अत्रि के अनुसार - कन्यागते सविर्तारे यान्ति सत्सुतान्।
यही कारण है कि धर्मशास्त्र पूरे महात्म्य में श्राद्ध का विधान करता है। जो पूरे पितृ पक्ष में श्राद्ध-तर्पण करने में असमर्थ हो उसे अपने पितरों की मृत तिथि में अवश्य श्राद्ध करना चाहिए या तिथिर्यस्य मासस्य मृताहे तु प्रवर्तते। स तिथि: पितृपक्षे तु पूजनीया प्रयत्नत: ।।
संपूर्ण महालय पक्ष में यदि परिवार में किसी विघ्न के कारण पितरों की तिथि में श्राद्ध न किया जा सके, तो उनका अथवा अपने परिवार, कुल या वंश में अज्ञात मृत्यु तिथि वाले पितरों का क्षयाहिक एकोद्दिष्ट श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए। इससे भी संपूर्ण मास के श्राद्ध की सिद्धि होती है, इसीलिए यह श्राद्ध सर्वपितृ श्राद्ध कहलाता है।
अथर्ववेद में कहा गया है कि सूर्य-चंद्र, दोनों जब साथ-साथ रहते हैं, वह तिथि अमावस्या है। उसमें सब साध्यगण पितृ विशेष और इंद्र आदि देवता एकत्र होते हैं। इसलिए इस दिन किए गए श्राद्ध का विशेष फल होता है। सभी महीने में अमावस्या श्राद्ध करने में असमर्थ होने पर कन्या, कुंभ और वृष के सूर्य के रहते तीनों अमावस्या में या एक अमावस्या को श्राद्ध करें।
अमावस्या का श्राद्ध पार्वण विधि से होता है, इसमें आश्विन की अमावस्या को त्रिपार्वण अर्थात पिता आदि तीन, नाना आदि तीन एवं माता आदि तीन के लिए श्राद्ध किया जाता है, जबकि अन्य अमावस्या में सपत्नीक पिता आदि तीन एवं सपत्नीक मातामह आदि तीन के लिए श्राद्ध किया जाता है। अमावस्या का श्राद्ध अपराह्न् काल में किया जाता है और जिस दिन अपराह्न् में अमावस्या हो, उस दिन श्राद्ध करना चाहिए।

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