शनिवार, 21 नवंबर 2009

हमारे जीवन के अदृश्य सहायक - डॉ. अरुण

श्राद्ध का अर्थ है- श्रद्धा व्यक्त करना तथा तर्पण का अर्थ है - तृप्त करना। पितर, वे हैं, जो पिछला शरीर त्याग चुके हैं, लेकिन अभी अगला शरीर प्राप्त नहीं कर सके हैं। इस मध्यवर्ती स्थिति में रहते हुए वे अपना स्तर मनुष्यों जैसा ही अनुभव करते हैं। हिंदू दर्शन की मान्यता है कि जब जीवात्मा स्थूल शरीर छोड़ देती है, तभी मृत्यु होती है।
अंत:करण चातुष्य (मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार) तथा कारण शरीर यानी भाव शरीर सहित जीवात्मा सूक्ष्म शरीर में ही रहती है, लेकिन अपनी उन्नति के लिए उसे हमेशा हमारे सहयोग की अपेक्षा रहती है। सद्भावनाएं संप्रेषित करने पर बदले में उनसे ऐसा ही भावनात्मक सहयोग प्राप्त होता है।
धर्मशास्त्रों में भी यही कहा गया है कि जो मनुष्य श्राद्ध करता है, वह पितरों के आशीर्वाद से आयु, पुत्र, यश, बल, वैभव-सुख और धन-धान्य को प्राप्त करता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि आश्विन मास के कृष्णपक्ष भर यानी पंद्रह दिनों तक रोजाना नियमपूर्वक स्नान करके पितरों का तर्पण करे और अंतिम दिन पिंडदान श्राद्ध करे।
पितृपक्ष का महत्व इस बात में नहीं है कि हम श्राद्ध कर्म को कितनी धूमधाम से मनाते हैं। इसका वास्तविक महत्व यह है कि हम अपने पितामह आदि गुरुजनों की जीवित अवस्था में ही कितनी सेवा व आज्ञापालन करते हैं। जो व्यक्ति अपने जीवित माता-पिता की सेवा नहीं करते और उनका अपमान करते हैं, बाद में उनका श्राद्ध करना निर्थक ही माना जाएगा। हां, अगर अंदर प्रायश्चित की भावना है तो उनके कोप से जरूर बचेंगे।
भारतीय ज्योतिष में पितृदोष का सबसे अधिक महत्व है। यदि घर में कोई मांगलिक कार्य नहीं हो रहे हों, रोज नई-नई आफतें आ रही हों, आदमी दीन-हीन होकर भटक रहा हो, संतान नहीं हो रही हो या संतान विकलांग पैदा हो रही हो तो इसका मुख्य कारण यह है कि उसकी कुंडली में पितृदोष है। यदि वह व्यक्ति श्रद्धा-भाव से अपने पूर्वजों के प्रति श्राद्ध पक्ष की अमावस्या को विधि-विधान से पिंड श्राद्ध एवं तर्पण करता है तो पितृ उससे प्रसन्न हो जाते हैं तथा आशीर्वाद देकर जाते हैं।
श्राद्ध मीमांसा में वर्णन है कि अगर व्यक्ति के पास श्राद्ध करने के लिए कुछ भी न हो तो वह अपने दोनों हाथ से कुशा उठाकर आकाश की ओर दक्षिणमुखी होकर अपने पूर्वजों का ध्यान करके रोने लगे और जोर-जोर से आर्तभाव से कहे- ‘हे मेरे पितरों! मेरे पास कोई धन नहीं है। मैं तुम्हें इन आंसुओं के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दे सकता’। ऐसा करने पर पितर उसके आंसुओं से ही तृप्त होकर चले जाते हैं।
श्राद्ध में ध्यान देने वाली बात यह है कि जिस व्यक्ति विशेष के लिए जो वस्तुएं आप खरीद रहे हों या दान रूप में दे रहे हों, वह उनके शीघ्र ही काम आने वाली हों। ऐसा न हो कि आप रुपए खर्च करें और वे वस्तुएं लंबे समय तक बिना काम के पड़ी रहें। इसलिए वैसी ही चीजें खरीदें और लोगों को दान में दें, जो पूर्वजों को पसंद हों।
पूर्वजों को याद करने का यह पक्ष बड़ा ही अद्वितीय है, क्योंकि पितरों को हम श्रद्धा देंगे तो वे हमें शक्ति देंगे। वे हमारे अदृश्य सहायक हैं। जहां तक पितृ पक्ष में नया कार्य करने अथवा न करने का प्रश्न है तो सिर्फ मांगलिक, यज्ञोपवीत आदि कार्य बंद होते हैं, बाकी सारे शुभ कार्य नि:संकोच किए जा सकते हैं।

4 टिप्‍पणियां:

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है अपने विचारों की अभिव्यक्ति के साथ साथ अन्य सभी के भी विचार जाने..!!!लिखते रहिये और पढ़ते रहिये....

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

narayan narayan

रंजू भाटिया ने कहा…

aapse kis mail adress par baat ho sakti hai ?

Admin ने कहा…

supporthindi [at] gmail [dot] com

एक टिप्पणी भेजें

Related Posts with Thumbnails