शनिवार, 21 नवंबर 2009

आलस्य भगाता है माणिक - मनोज जैन

 ruby माणिक अत्यंत मूल्यवान रत्न माना जाता है। इसमें रंग की एकरूपता तथा अच्छी पारदर्शिता प्राय: दुर्लभ है। यह कुरुविंद समूह का रत्न है। यह पारभासक से पारदर्शकता के साथ लाल रंग में कत्थई-सी झांई लिए हुए होता है। इसका श्रेष्ठ रंग ‘कपोत लहुरंग’ है। इस रत्न में तिड़ालाक्ष प्रभाव व ताराछटा प्रभाव दुर्लभ है।
रंग का प्रमाण अधिकतर सभी जगह नियमित नहीं होता। इसमें एल्युमिनियम ऑक्साइड का रासायनिक गठन है तथा रंग क्रोमियम से आता है। इसे हिंदी में माणिक, इंग्लिश में रूबी और संस्कृत में माणिक्य कहते हैं। प्राकृतिक माणिक लघु तरंगामित पारजामुनी प्रकाश फेंकता है।
यदि गुलाबी रंग हो तो उसे हिंदी में ‘पादपराशा’ तथा इंग्लिश में पिंक सफायर कहा जाता है। यह रत्न अनेक राजचिन्हों तथा मशहूर आभूषणों में सुशोभित है, इसलिए इसे रत्नों का राजा भी कहा गया है।
न्यूयॉर्क के प्राकृतिक संग्रहालय में लंबतारा (100 कैरेट) और शांति माणिक (43 कैरेट) रखा हुआ है, जिसकी प्राप्ति प्रथम विश्वयुद्ध के बाद हुई थी। भारतीय ज्योतिष के मतानुसार में यह रत्न सूर्य ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। गर्म तासीर का होने के कारण यह जातक में आलस्य की प्रवृत्ति को दूर करता है।
ऐसा कहा जाता है कि सूर्य की लंबवत किरणों जब इस रत्न पर पड़ती हैं तो इसके अणु काफी उग्र होकर चमक पैदा करते हैं। इससे जातक को आर्थिक संपन्नता, वैभव तथा ख्याति प्राप्त होती है और रक्त से संबंधित विकार दूर होते हैं। महिलाओं को माणिक के आभूषण बेहद लुभाते हैं।

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