शनिवार, 21 नवंबर 2009

इष्ट सिद्धि के लिए नवरात्र साधना - पं. पुष्कर राज

हमारी जीवनशक्ति, चेतना शक्ति बीज रूप से शरीर के नीचे के केंद्र यानी मूलाधार चक्र में सुप्त पड़ी है। इस दिव्य योग में मंत्र जप व साधना से वह जाग्रत होकर ऊध्र्वगामी होती है। ऊर्जा के इस ऊध्र्वगमन से शरीर में स्थित षट्नाड़ी चक्रों का वेधन होता है। इससे नाड़ी शोधन होकर स्वरों की पुष्टि और प्राणों की गति सामान्य होती है। साधक इस ऊर्जावान साधना से उत्तम स्वास्थ्य के साथ ही अलौकिक शक्तियों को प्राप्त करता है। यही दिव्य ऊर्जा शरीर में रामजन्म है जिसे पर्व के रूप में रामनवमी को मनाया जाता है।
ऊर्जादायक अनुष्ठान
देवी भागवत, चतुर्वर्गचिंतामणि, कालोदय, मदनरत्न, निर्णयसिंधु आदि ग्रंथों के अनुसार नवरात्र में शक्ति जागृत रहती है। इस समय नवाह्न् पाठ को अश्वमेध यज्ञानुष्ठान के समान फल देने वाला माना गया है। महाभारत में आया है कि भगवान श्रीकृष्ण ने भी यह अनुष्ठान किया था। महर्षि व्यास ने राजा जनमेजय को कलिकाल में नवदुर्गा पूजन श्रेष्ठ व सिद्धि प्रदाता बताया था। व्यास ने इन शक्तियों की स्थापना के उद्देश्य से ही मरकडेय पुराण की रचना की। नवरात्र की नौ देवियां हैं जिनकी क्रम से पूजा आराधना करनी चाहिए-
1. शैलपुत्री, 2. ब्रrाचारिणी, 3. चंद्रघंटा, 4. कुष्मांडा, 5. स्कंदमाता, 6. कात्यायिनी, 7. कालरात्रि, 8. महागौरी और 9. सिद्धिदात्री।
सर्वप्रकारेण लाभ
भौतिक और आध्यात्मिक लाभ के लिए गायत्री महामंत्र का लघु अनुष्ठान भी करना चाहिए। रोजाना 27 माला करने से नौ दिन में लघु अनुष्ठान पूरा हो जाता है। रामचरित मानस, हनुमान चालीसा, रामरक्षास्तोत्र, सुदर्शन कवच, दैवीकवच आदि का पारायण भी सिद्धिदायक है। चार प्रकार के मंत्रों में साबर मंत्र सिद्धि के लिए, तांत्रिक मंत्र चमत्कार के लिए, बीजमंत्र ग्रहदोष निवारण व देव प्रसन्नता के लिए और वैदिक मंत्र आत्म शांति व आध्यात्मिक सिद्धि के लिए फलदायी होते हैं। अपने उद्देश्य के अनुसार इनका चयन कर सकते हैं।
अंतिम दिन साधना की पूर्णाहुति हवन के साथ करनी चाहिए। हवन में आहुति स्वयं के हित के साथ ही राष्ट्रहित का चिंतन करते हुए दें। अंत में कुमारीपूजा करनी चाहिए। यह नवरात्र का प्राण है। वस्त्रालंकार, गंध, पुष्प से कुमारियों की पूजा करके श्रद्धापूर्वक उन्हें भोजन कराना चाहिए। दो साल की बालिका कुमारी, तीन साल की त्रिमूर्ति, चार साल की कल्याणी, पांच साल की रोहिणी, छह साल की कालिका, सात साल की चंडिका, आठ साल की शांभवी और नौ साल की दुर्गा कही जाती है।
अनुष्ठान विधि इस बार छह अप्रैल, रविवार को प्रतिपदा तिथि का क्षय हुआ है, फिर भी शास्त्र सम्मति से इस दिन अभिजित् मुहूर्त (12.04 से 12.54 बजे) में घट स्थापना करें। अखंड तेल का दीपक प्रज्वलित करें। स्नान के बाद धुले हुए वस्त्र धारण करें और कंबल के आसन पर ईशान कोण की ओर मुंह करके, सुखासन में बैठकर साधना करें। साधना में रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए अन्यथा ऊर्जा का ऊध्र्वगमन नहीं होगा।
साधना में माला को कपड़े से ढंककर या गोमुखी में रखकर ही जाप करें अन्यथा जाप का फल नहीं मिलता है। रोजाना दिन में फलाहार या सादा सात्विक भोजन एक बार ही करें। नवरात्र में भूमि शयन करें और ब्रrाचर्य का पूर्ण पालन करे। साधना मौन व्रत के साथ, शांत चित्त से और मन में दृढ़ विश्वास के साथ करें। नवरात्र के अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद घट के जल को तुलसी में सींच दें व अन्य सामग्री को अच्छा चौघड़िया देखकर जल में प्रवाहित करें।

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