शनिवार, 21 नवंबर 2009

नवरात्र में श्री सरस्वती की उपासना - प्रो. शुकदेव

अपनी बौद्धिक एवं आध्यात्मिक शक्ति का विकास करने के लिए साधना सबसे कारगर उपाय है। यह साधना नित्य एवं नैमित्तक भेद से दो प्रकार की होती है। जो साधना सदैव एवं निरंतर की जाती है वह नित्य साधना कहलाती है, किंतु सांसारिक लोगों के पास इतना समय नहीं है कि वे नित्य साधना कर सकें। अत: सांसारिक मनुष्यों के जीवन की समस्या एवं संकटों का समाधान करने के लिए महर्षियों ने नैमित्तक साधना का प्रतिपादन किया है। इस नैमित्तक साधना के महापर्व को ही नवरात्र कहते हैं। नवरात्र के भेद
वैदिक ज्योतिष की गणना के अनुसार प्रतिवर्ष चार नवरात्र होते हैं। इनमें चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से वासंतिक नवरात्र, आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से गुप्त नवरात्र, आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शारदीय नवरात्र एवं माघ शुक्ल प्रतिपदा से पुन: गुप्त नवरात्र होता है। शाक्त आगमों के अनुसार ये चारों नवरात्र साधकों के लिए अमोघ फलदायी होते हैं।
वासंतिक नवरात्र का महत्व
वैसे तो चारों नवरात्र साधना के महापर्व होते हैं किंतु इनमें चैत्र मास का वासंतिक नवरात्र देवी-देवताओं के दिन के प्रात:काल में पड़ता है। इसलिए इसकी महिमा अपरंपार है। इस वासंतिक नवरात्र में मां सरस्वती की साधना विशेष फलदायी होती है। इस वर्ष वासंतिक नवरात्र 6 अप्रैल से 14 अप्रैल २क्क्८ के बीच पड़ रहा है। (कुछ स्थानों पर 7 अप्रैल से भी नवरात्र मान्य हैं) यह समय मां सरस्वती के उपासकों के लिए कामधेनु या कल्पवृक्ष के समान फलदायी है।
शक्ति एवं उसके रूप
मानव जीवन समस्या एवं संकटों से भरा है। कष्टों के दलदल में फंसे लोगों को मुक्ति पाने के लिए ‘आद्याशक्ति’ की उपासना सबसे विश्वसनीय उपाय है। वह आद्याशक्ति ‘एकमेव’ एवं ‘अद्वितीय’ होते हुए भी अपने साधकों को काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी एवं कमला - इन दशमहाविद्याओं के रूप में वरदायिनी होती है। वही जगतजननी शैलपुत्री, ब्रrाचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री, इन नवदुर्गाओं के रूप में भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करती है। तात्विक दृष्टि से उसके तीन रूप महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हैं।
बौद्धिक विकास के लिए साधना
‘बुद्धिर्यस्य बलतस्य’ जैसे कालजयी सिद्धांतों को निरूपित करने वाले आचार्यो के अनुसार मानवीय शक्तियों में बुद्धि सर्वोपरि है किंतु जब मनुष्य की बुद्धि विचलित या भ्रष्ट हो जाती है, तब वह दयनीय स्थिति में फंस जाता है। यह स्थिति उसके धैर्य या विश्वास के टूटने पर आती है। मानवमात्र के धैर्य एवं विश्वास को जाग्रत कर उसके बौद्धिक विकास के लिए मां सरस्वती की उपासना की परंपरा हमारे यहां प्राचीन काल से प्रचलित है। मां सरस्वती की कृपा से प्राप्त बुद्धि के बल पर मनुष्य विद्या, यश एवं धन सभी कुछ प्राप्त कर लेता है। इसीलिए दुर्गा सप्तशती में बुद्धि को देवी/शक्ति का रूप माना गया है, यथा ‘या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता’, अस्तु।
आज हमारे समाज के सभी वर्गो में तनाव, निराशा, आपाधापी एवं हड़बड़ी का बोलबाला है, जो लोगों के बौद्धिक विचलन का लक्षण है किंतु समाज के अन्य वर्गो की अपेक्षा युवा वर्ग इस समस्या से ज्यादा ग्रस्त है। मां सरस्वती की उपासना इस बीमारी की रामबाण औषधि है। इसलिए इस वासंतिक नवरात्र में छात्रों, बेरोजगार युवाओं एवं बुद्धिजीवियों को मां सरस्वती की उपासना करनी चाहिए।
इस वासंतिक नवरात्र में छात्रों एवं युवाओं को अपनी परीक्षा, प्रवेश परीक्षा, प्रतियोगिता परीक्षा, इंटरव्यू, काउंसलिंग एवं ग्रुप डिस्कशन आदि में सफलता के लिए जिन मंत्रों का अनुष्ठान करना चाहिए, वे इस प्रकार हैं :- परीक्षा, प्रवेश परीक्षा एवं प्रतियोगिता
परीक्षा के लिए
‘ú हृीं ऐं हृीं ú सरस्वत्यै नम:’
शोधछात्र एवं प्रोफेशनल कोर्सो के छात्रों के लिए
ú ऐं सरस्वत्यै सुबुद्धिं सिद्धिं कुरु स्वाहा’
इंटरव्यू, काउंसलिंग एवं ग्रुप डिस्कशन आदि के लिए
‘वद वद वाग्वादिनि स्वाहा’
माध्यमिक कक्षाओं के सामान्य छात्रों के लिए ‘ú ऐं सरस्वत्यै नम:’
अनुष्ठान विधिनित्य नियम से निवृत्त होकर सफेद धुले वस्त्र पहनें। आसन पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख बैठकर माथे पर चंदन या तिलक लगाएं। अपने सामने श्री सरस्वती का यंत्र/मूर्ति/चित्र स्थापित कर उसका षोडशोपचार या पंचोपचार (गंध, अक्षत, पुष्प, धूप एवं दीप) से पूजन कर मां सरस्वती का ध्यान करते हुए एकाग्रतापूर्वक मंत्र का जप करें।
अनुष्ठान के दिनों में एक समय फलाहार या सात्विक आहार लेना चाहिए। जप के बाद शारदा स्तोत्र, सिद्ध सारस्वत स्तोत्र या श्री सरस्वती सहस्त्रनाम आदि का पाठ करना विशेष फलदायी होता है। वासंतिक नवरात्र में श्रद्धापूर्वक मां सरस्वती का पूजन, मनोयोगपूर्वक मंत्र का जप और आस्थापूर्वक पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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