सिक्खों के पांचवे गुरु श्री अर्जुनदेव जी ने गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किया। उस समय मुगलकाल का दौर था और अकबर की बादशाहत थी। अर्जुनदेवजी से ईष्र्या रखने वाले लोगों ने बादशाह अकबर को गुरुदेव और गुरु ग्रंथ के खिलाफ भड़काया और कहा कि गुरुग्रंथ साहिब में हिंदू और मुसलमानों के खिलाफ लिखा गया है। जिससे राज्य में सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हो सकता है।
अकबर ने यह सारी बातें सुनकर तुरंत ही गुरुदेव से ग्रंथ साहिब मंगवाया।
गुरुदेव को बादशाह का संदेश मिलने पर उन्होंने अपने प्रिय बुड्ढाजी को गुरुग्रंथ के साथ अकबर के पास भेजा। अकबर ने बुड्ढाजी से ग्रंथ साहिब के संबंध मे सुनी सारी बातें कह सुनाई। बुड्ढाजी ने बादशाह से कहा आप खुद ग्रंथ साहिब को कही से भी खोलकर पढ़ लें। आपकी सारी शंकाओं का समाधान हो जाएगा।
बादशाह अकबर ने ग्रंथ साहिब के पन्ने पलटना शुरू किए, एक पन्ने पर राग रामकली में लिखा पद देखा-
कोई बोलै राम राम, कोई खुदाई।
कोई सेवै गुसइयां, कोई अलाहि॥
कारण करण करीम।
किरपा धारि रहीम॥
कोई न्हावै तीरथि, कोई हज जाई।
कोई करै पूजा, कोई सिरु निवाई॥
कोई पढ़ै वेद, कोई कतेब।
कोई औढ़ै नील कोई सुपेद॥
कोई कहै तुरुक, कोई कहै हिंदू।
कोई बांछै भिसतु, कोई सुरगिंदू॥
कहु नानक जिति हुकमु पछाना।
प्रभु साहिब का तिनि भेदु न जाना॥
यह पद पढ़कर बादशाह अकबर की खुशी का ठिकाना ना रहा और उसने देखा पूरे ग्रंथ में इस तरह की कई पंक्तियां हैं। इसके बाद बादशाह अकबर ग्रंथ साहिब से इतने प्रभावित हुए कि वे खुद गुरु अर्जुनदेवजी से मिलने अमृतसर श्री हरिमंदिर साहिब पहुंच गए।
अकबर ने हरमंदिर साहिब के दर्शन कर ५१ अशर्फियां चढ़ाई। अब वे गुरुदेव से मिलने पहुंचे। अकबर गुरुदेव से मिलकर इतना प्रभावित हुआ कि उसने गुरुजी को कोई जागीर देने की इच्छा जताई।
उस समय पंजाब में किसानों की फसल अच्छी नहीं हुई थी और वे बादशाह अकबर का लगान चुकाने में असमर्थ थे। बस गुरुदेव ने किसानों को उस लगान से मुक्त करने की बात बादशाह के सामने रखी। मुगल बादशाह कभी लगान नहीं छोड़ते थे परंतु गुरुदेव की बात मानकर अकबर ने किसानों का लगान माफ कर दिया। इस बात से बादशाह अकबर के मन में गुरुदेव के प्रति आस्था और बढ़ गई।
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