इस रोग के मूल में शनि को भी देखना चाहिए। ज्योतिषीय दृष्टि से इसके कारणों में शनि और उसकी राशियों मकर एवं कुंभ पर पाप ग्रह का प्रभाव होना है। उक्त राशियों में मौजूद चंद्रमा पर पाप दृष्टि हो, शनि यदि अस्तगत, नीचत्व प्राप्त हो व त्रिक्भाव में त्रिकेशों के साथ हो अथवा मेष राशि में पापी ग्रह हो तो पोलियो की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे जातक को विशेष रूप से पूर्वोपचार करना चाहिए। इसी प्रकार जातक की कुंडली के पांचवें, सातवें और ग्यारहवें भाव में पापी ग्रह भी इस रोग के सहायक हो सकते हैं।
कारण : पोलियो पीड़ितों की कुंडली देखने से प्रतीत होता है कि शनि अपनी नीच राशि मेष में आठवें भाव में स्थित है और त्रिकेश मंगल से भी पीड़ित है। चंद्रमा शनि की कुंभ राशि में राहु के साथ है और कोई शुभ दृष्टि नहीं होने से जातक आजीवन पोलियोजन्य त्रासदी भोगता है।
ज्योतिषीय परामर्श : पोलियोरोधी खुराक पिलाना सबसे उचित है। इसके अलावा जिसकी कुंडली में ऊपर दर्शाए गए ग्रह योग बने हों, उसके परिजनों और जिनको यह रोग हो चुका हो, उनको शनि व चंद्रमा की वस्तुओं का दान करना चाहिए। साथ ही इन ग्रहों के मंत्रों का जाप भी करना या करवाना चाहिए।
रोज शाम या रात्रि के समय महामृत्युंजय महामंत्र की एक माला करनी चाहिए। यह जाप ऊनी आसन पर बैठकर शिव आराधना के साथ करना बहुत प्रभावी माना गया है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में आया है कि दूध में लहसुन का प्रयोग करें। आधा किलो दूध में पांच कली लहसुन कूटकर डालें और तब तक उबालते रहें, जब तक कि दूध आधी कटोरी रह जाए। इसमें कुछ शक्कर डालकर पंद्रह दिनों तक सुबह पीने से लाभ मिलता है। यह प्रयोग शनिवार से करना चाहिए।
-पं. पुष्कर राज
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