घर में ईशान कोण (दक्षिण-पूर्व) को सदैव संतुलित रखना चाहिए। शारीरिक व्याधियों, खासकर महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर इस कोण को संतुलित रखना निहायत जरूरी है। इस कोने में जलस्थान, देवस्थान और अध्ययन के अतिरिक्त अन्य कोई गतिविधि नहीं होनी चाहिए।
ऐसे कई कारण सामने आए हैं जहां ईशान कोण के दूषित होने या असंतुलित होने के कारण परिवार में महिला सदस्याओं का स्वास्थ्य ख़राब हुआ है, उनके एक से अधिक ऑपरेशन, नित्य व्याधियां रहने और मरण या मरण तुल्य कष्ट की नौबत तक आई है।
वास्तुग्रन्थों में ईशान कोण को बहुत महत्व दिया गया है। सव्य क्रम यानी परिक्रमा पथ की शुरुआत ईशान से ही होती है। यह आस्थाओं का पोषण-पल्लवन करने वाला है। यह निर्देश है कि ईशान कोण का बढ़ा होना परिवार में न केवल स्वास्थ्य-संपदा को बनाए रखता है बल्कि नई पीढ़ी में संस्कारों के बीजारोपण और आस्थाओं को बलवान करता है। पूर्व में प्लॉट का झुकाव ईशान से ही शुरू होता है जो आग्नेय कोण तक रहता है और आग्नेय से नैर्ऋत्य कोण तक उठाव ठीक रहता है। जिन घरों में ईशान कोण कटा हुआ या कम होता है, वहां दैविक आपदाएं देखी गई हैं। नास्तिक विचारों के पोषण में भी इस कोण का नहीं होना सहायक रहता है और इसी कारण परिजनों के विचारों में तालमेल का अभाव रहता है। पति-पत्नी ही नहीं, पिता-पुत्र के विचार भी मेल नहीं खाते। न पिता पुत्र की इच्छाओं की पूर्ति कर पाता है न ही पुत्र पिता के कहने पर चलता है। ऐसे परिवार में पत्नी हमेशा सुख और सुकून की खोज में ही रहती है जबकि उस पर कार्य का दबाव सर्वाधिक रहता है।
क्या करें संतुलन के लिए
ईशान कोण को संतुलित रखने के लिए यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि वह कटा हुआ नहीं हो। हां, बाहर निकला हुआ हो तो लाभकारी होगा। एकदम ईशान में द्वार नहीं हो। ईशान से आग्नेय कोण तक प्लॉट की जो लंबाई हो, उसमें आठ या नौ का भाग दें और ईशान से दो हिस्से छोड़कर आवाजाही के लिए द्वार रखना चाहिए। वास्तु ग्रंथों में इसे जयंत का पद कहा गया है। यह समृद्धि का द्वार होता है।
यदि यहां द्वार रखकर आना-जाना किया जाए तो परिवार में आय के नए व स्थायी स्रोत खुलेंगे और न केवल घर में बल्कि मित्रों, व्यवसाय स्थल पर भी विश्वास का वातावरण बनेगा। हां, यहां पर वाहन को खड़ा नहीं करें बल्कि तुलसी, अश्वगंधा, मरुवाक की पौध लगा दें। ईशान में फु लवारी हो तो विचारों में उथल-पुथल बनी रहती है।
ईशान कोण में जल स्रोत इस तरह बनाएं कि यदि नैर्ऋत्य से ईशान तक रेखा खींची जाए तो जलस्रोत विभाजित नहीं होता दीखे यानी थोड़ा दूर हो। घर की नाली या नाला ईशान में नहीं रखें। वहां से अंदर जल आता हो तो शुभ है।
इसी कोण में अपने इष्टदेव का पूजा स्थल बनाए तथा वहां गंगाजल से भरा पात्र, शंख, आदि भी रखकर उसे जल से पूर्ण रखना चाहिए और पूजा के बाद शंखोदक को अपने ऊपर छिड़कना चाहिए।
ईशान में दीपक को अखंड नहीं, पूजा के समय या कुछ बाद तक ही रहे, ऐसा प्रबंध करना चाहिए। ईशान में चौबीस घंटे दीपक कई बार सिरदर्द का कारण सिद्ध हाता है।
3 टिप्पणियां:
badiya jankaari hain
ईशान कोण (दक्षिण-पूर्व)
yanha uttar-purva hona chahiye
Is Blog me kahi ishaan ko south-east to kahin north-east likha gaya hai.
Kya Koi Bata Sakta hai k Sahi (Correct) kon sa hai?
एक टिप्पणी भेजें