बुधवार, 23 दिसंबर 2009

सूर्यास्त के बाद अशुभ फल देते हैं नहोराता के ग्रह

लाल किताब ज्योतिष में अंधे ग्रहों की कुंडली के अलावा एक और सिद्धांत है नहोराता के ग्रह। इन्हें रात्रि में अंधे ग्रहों या रतांध ग्रहों का टेवा भी कहा नहोराता के ग्रह जाता है। इस परिभाषा में केवल दो ग्रहों का ही जिक्र है यानी चौथे घर में सूर्य हो और सातवें घर में शनि तो ऐसा टेवा रतांध ग्रहों का टेवा कहलाएगा।

इस प्रकार के योग से व्यक्ति के कार्यक्षेत्र में अस्थिरता, मानसिक शांति और गृहस्थ सुख की कमी जैसे अशुभ प्रभाव आते हैं। सूर्य-शनि की परस्पर ऐसी स्थिति किसी अन्य भाव में चतुर्थ-दशम स्थिति से बिल्कुल भिन्न है, क्योंकि चौथे घर में सूर्य की स्थिति होने से व्यक्ति का जन्म समय मध्यरात्रि के आसपास का होता है, जिस समय सूर्य निर्बल होता है। वहीं सप्तम भाव का शनि कालपुरुष कुंडली में अपनी उच्चराशि में स्थिर होने से और रात्रि समय जन्म के कारण रात्रि बली होने से सूर्य की अपेक्षा काफी बलवान होता है।

सप्तम में बैठे शनि की दसवीं दृष्टि चौथे घर में बैठे उसके शत्रु सूर्य पर होने से चौथे घर और सूर्य का फल अनेक प्रकार से अशुभ हो जाता है। एक तो चौथे घर का फल यानी हमारी मानसिक शांति और गृहस्थ सुख, दोनों पर शनि का अशुभ प्रभाव और दूसरे शनि की दृष्टि से दूषित सूर्य का चौथे घर पर अपना अशुभ प्रभाव रहता है।

सूर्य की दृष्टि दसवें घर पर होने से उसका प्रभाव कर्मक्षेत्र, नौकरी और व्यवसाय पर भी ठीक नहीं रहता। नहोराता के ग्रहों का अशुभ असर सूर्यास्त के बाद प्रबल होता है। इसका प्रभाव व्यक्ति की दृष्टि और कार्यक्षेत्र में अधिक रहता है। ऐसे व्यक्तियों को अपने कैरियर में बहुत दिक्कतें आती हैं और उतार-चढ़ाव बना रहता है। खासतौर पर अगर वे ऐसे कामों में हों, जहां नाइटशिफ्ट में काम करना पड़े। जिन व्यक्तियों की कुंडली में यह योग हो, उन्हें कोई भी नया काम, नया प्रोजेक्ट सूर्यास्त के बाद शुरू नहीं करना चाहिए। किसी नए कार्य की कार्ययोजना भी सूर्यास्त के बाद न बनाएं, अन्यथा ऐसे प्रोजेक्ट्स में बहुत रुकावटें आती हैं और सफलता संदिग्ध ही रहती हैं।

सूर्य-शनि की ऐसी स्थिति व्यक्ति के आत्मबल (सूर्य) और मनोबल (चंद्रमा-चतुर्थ भाव) पर अशुभ असर देती है, जिससे व्यक्ति की निर्णय क्षमता और संकल्पशक्ति पर प्रभाव पड़ता है।

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