मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

ग्रह स्थिति बनाए धनवान

ज्योतिष ग्रंथों में लक्ष्मीवान होने संबंधी अनेक योगों का उल्लेख है। यदि ये योग जातक की कुंडली में हैं तो व्यक्ति निश्चय ही धनी होता है। सामान्य मूल्यांकन करने पर यह देखा जाता है कि कुंडली में चंद्र-मंगल की युति है तो ऐसा जातक जीवन में आर्थिक रूप से संपन्नता प्राप्त करता ही है। इसके अलावा अन्य लक्ष्मी योग हैं - >> यदि द्वितीय स्थान का स्वामी ग्यारहवें भाव में स्थिर होकर द्वितीय भाव को देखता है।>> यदि द्वितीय भाव का स्वामी उच्च का हो तथा उस पर शुक्र, गुरु, चंद्र, बुध की दृष्टि हो।

>> द्वितीय भाव का स्वामी नवम या पंचम में श्रेष्ठ स्थिति में विद्यमान हो।

>> द्वितीय भाव का स्वामी बृहस्पति अपनी उच्च राशि में नवम भाव में (वृश्चिक लग्न में) उपस्थित हो।

>> नवम भाव एवं लग्न अपनी-अपनी उच्च राशि में हो या उत्तम स्थिति में हो।

>> नवम एवं लाभ का राशि परिवर्तन योग हो।

>> लग्न एवं नवम भाव के स्वामी दोनों एक साथ विद्यमान हों या केंद्र त्रिकोण में श्रेष्ठता से युक्त हो।

>> लग्न एवं नवम भाव के स्वामी आपस में देख रहे हों।

>> लग्न का स्वामी लग्न को तथा नवम भाव का स्वामी नवम भाव को अथवा लग्नेश-भाग्येश को तथा भाग्येश लग्न को देख रहा हो।

>> केंद्रों के स्वामी अपनी उच्च स्थिति में विद्यमान हों।

>> नवम एवं लग्न के स्वामी केंद्र में हों तथा उन पर शुभ ग्रहों (गुरु, चंद्र, शुक्र, बुध) की दृष्टि हो।

प्रश्न उठता है कि जिस जातक की कुंडली में उपरोक्त योगों की अनुपलब्धता है तो क्या वे अभाव में रहेंगे? नहीं, इसके अतिरिक्त भी बहुत से ऐसे योग होते हैं जिनके कारण जातक अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होता है। अत: लक्ष्मी योग को ध्यान से देखा जाना चाहिए।


पं. राजाभाऊ रावल

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