सोमवार, 23 नवंबर 2009

उम्र जानें.. अपने लाड़ले की - डॉ. अनुराग

आयुर्वेद आयु संबंधी विज्ञान है। नवजात शिशु की आयु जानने के लिए महर्षि अग्निवेश ने शिशु के शारीरिक अंगों की परीक्षा का विधान बतलाया है, जिससे उनकी आयु का आकलन किया जा सकता है।
केश : प्रत्येक रोमकूप में से एक-एक केश निकला हो, बाल मुलायम, अल्प, चिकने व मजबूत जड़ वाले हों। ऐसे बाल शुभ होते हैं।
त्वचा : अपने-अपने अवयवों के ऊपर अच्छी तरह से स्थिर त्वचा अच्छी मानी गई है। सिर : अपनी स्वाभाविक आकृति वाला सिर, शरीर के अनुपात में, छाते के समान बीच में कुछ ऊंचा सिर श्रेष्ठ होता है।
ललाट : चौड़ा, मजबूत, समतल, शंख प्रदेश की संधियां परस्पर मिली हों, ऊपर की ओर रेखाएं उभारयुक्त हों, ललाट मांसल हों। अभिप्राय यह है कि उस पर केवल त्वचा का ही आवरण न हो। माथे पर वलियां दिखाई दें। अर्धचंद्र की आकृति वाला ललाट शुभ होता है।
कान : दोनों कान मांसल हों, बड़े, पीछे की ओर समतल भाग वाले और बाहरी भाग मजबूत हो, कर्ण गुह्य के छिद्र मजबूत हों, ऐसे कान शुभ होते हैं।
भौंहें : दोनों भौंहें थोड़ा-सा नीचे की ओर लटकी हों, नाक के ऊपरी भाग के पास भौंहें मिली न हों, दोनों समान व दूर तक फैली हुई हांे। ऐसी लंबे आकार वाली भौंहें शुभ होती हैं।
आंखें : दोनों आंखों का आकार समान हो अर्थात एक आंख बड़ी और एक छोटी न हो। दृष्टि मंडल, कृष्ण मंडल तथा श्वेत मंडल का विभाजन ठीक ढंग से हुआ हो, आंखें बलवती और तेजोमय हों। ऐसी आंखें शुभ लक्षणों से युक्त मानी गई हैं।
नासिका : सीधी, लंबी, सांस लेने में समर्थ और नासिका का अगला कुछ भाग झुका हुआ हो तो ऐसी नासिका शुभ होती है।
मुख : मुख का आकार बड़ा तथा शरीर के अनुपात में होना चाहिए। सीधा व जिसके भीतर दंतपंक्ति व्यवस्थित हो, ऐसा मुख शुभ होता है। हालांकि इस समय दंत उत्पत्ति नहीं हुई होती, लेकिन शिशु के मसूढ़ों को देखकर दांतों की परीक्षा की जा सकती है।
जीभ : चिकनी अर्थात जिसमें खुरदरापन न हो, पतली, अपनी आकृति तथा अपने वर्ण से युक्त जीभ शुभ होती है।
तालु : चिकना, मांस से समुचित रूप से भरा हुआ और स्वाभाविक गरमी से युक्त लाल वर्ण का तालु शुभ होता है।
स्वर : दीनतारहित, चिकना, स्पष्ट और गंभीर स्वर शुभ होता है।
होंठ : दोनों होंठ न अधिक मोटे हों, न अधिक पतले हों, मुंह को भलीभांति ढंकने में समर्थ हों तथा लालिमा से युक्त हों।
हनु : ठोढ़ी को हनु भी कहा जाता है। ठोढ़ी की दोनों हड्डियों का समान रूप से बड़ा होना शुभ होता है।
गर्दन : गर्दन का गोलाकार होना और अधिक लंबी न होना शुभ होता है।
उर : चौड़ी और मांसपेशियों से ढंकी छाती शुभ है।
कॉलर बोन तथा रीढ़ : इन दोनों का मांसपेशियों से ढंका रहना शुभ लक्षण माना गया है।
स्तन : दोनों स्तनों के बीच पर्याप्त दूरी का होना शुभ माना गया है।
पाश्र्व : दोनों पाश्र्व भाग मांसल, पतले व स्थिर हों तो शुभ माने जाते हैं।
बाहु, टांगें और उंगलियां : दोनों भुजाएं, पैर और उंगलियां गोलाकार और अपने अनुपात से लंबी हों तो शुभ होती हैं।
हाथ-पैर : जिसके हाथ-पैर लंबे हों और मांस से भरे-पूरे हों, पादतल और करतल मांसल हो, ऐसे हाथ-पैरों को शुभ माना गया है।
नख : स्थिर, ठोस, आकार में गोल, चिकने, तांबे के समान लालवर्ण वाले, बीच में उठे हुए और कछुए की पीठ की हड्डी के समान नाखून शुभ माने गए हैं।
नाभि : दाहिनी ओर घुमाव वाली, बीच में गहरी व चारों ओर से उठे किनारों वाली नाभि को परम शुभ माना गया है।
कटि : कमर छाती की चौड़ाई से तीन हिस्सा पतली, समतल, समुचित रूप से मांसपेशियों से ढंकी हुई अर्थात जो आवश्यकता से अधिक मोटी न हो, वह शुभ होती है।
कूल्हे : दोनों कूल्हे सामान्य रूप से गोलाकार होने चाहिए, मांस से परिपुष्ट होने चाहिए, अधिक उठे हुए और अधिक धंसे हुए नहीं होने चाहिए।
जंघा : दोनों जांघें हरिणी के पैर जैसी, जो न अधिक मोटी हों और न अधिक पतली अर्थात मांसहीन हों, ऐसी जांघें शुभ मानी गई हैं।

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Mere maa pabuji ki pata nahi mai kaun se year me paisa huyi hu to please aap bataye kaise janu sahi age?

बेनामी ने कहा…

Mai sapne me bahut sari deepak jala kar nadi me banana dekhi iska MATLAB kya hai

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