सोमवार, 23 नवंबर 2009

गठिया रोग ज्योतिषीय कारण एवं उपचार - पुष्कर राज

गठिया रोग ज्योतिषीय कारण एवं उपचार शरीर में यूरिक अम्ल का संतुलन बिगड़ जाने से घुटनों व जोड़ों में श्वेत पदार्थ जमकर उन्हें निष्क्रिय बना देता है। इससे रोगी उठने-बैठने व चलने-फिरने में दर्द का अनुभव या असमर्थता प्रकट करता है। 45 वर्ष की आयु के बाद प्राय: यह रोग सक्रिय होता है। यह बुढ़ापे का एक कष्टकारी रोग है। इसे आमवात भी कहते हैं।
ज्योतिष मतानुसार इस रोग का कारक ग्रह बृहस्पति है। गुरु व लग्नेश की युति षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में होने पर गठिया रोग होता है। वृष, मिथुन व तुला राशि के जातकों में गठिया का विशेष प्रभाव देखा जाता है। कुछ विद्वानों ने वृष, सिंह, कन्या, मकर व मीन राशियों में शनि, मंगल व राहु की युति व दृष्टि संबंध से भी इस रोग के होने की पुष्टि की है। आचार्य वराहमिहिर ने लग्न में बृहस्पति पर सप्तम में शनि की दृष्टि से गठिया रोग होना बताया है।
अनुभूत योग:
लग्न में बृहस्पति सप्तम के शनि द्वारा दृष्ट है। अत: जातक गठिया रोग से पीड़ित रहा।
ज्योतिषीय उपचार
* गुरुवार को गुरु की वस्तुओं का दान, व्रत व मंत्र साधना करनी चाहिए। एक माला ऊं बृं बृहस्पतये नम: का जाप प्रतिदिन करना चाहिए।
* गुरुवार को गाय को चने की दाल, रोटी एवं केला खिलाना चाहिए।
* मंगल, शनि व राहू आदि की वजह से गठिया रोग हो तो उस ग्रह से संबंधित दान, व्रत, मंत्र जाप करने से रोग में शांति मिलेगी।
* सप्ताह में एक बार लंघन करना अर्थात निराहार रहकर मंत्र साधना करने से बहुत लाभ होगा।

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