शनिवार, 21 नवंबर 2009

मूल नक्षत्र कैसे जानें

बालक का जन्म होने पर अभिभावक की प्रथम प्रश्न/जिज्ञासा यह रहती है कि बालक का नाम नक्षत्र क्या है तथा यह परिवार के लिए कैसा रहेगा। नक्षत्र तथा चरण के ज्ञात होने पर हमने बालक नाम एवं राशि तो जान ली, अब हमें नक्षत्र देखना है कि बालक का जन्म मूल संज्ञक नक्षत्र में तो नहीं हुआ है। 27 नक्षत्रों में अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल एवं रेवती कुल 6 नक्षत्र मूल संज्ञक (तुल्य) नक्षत्र कहलाते हैं।
इनमें भी आश्लेषा, ज्येष्ठा एवं मूल बड़े मूल तथा शेष अश्विनी, मघा एवं रेवती हल्के मूल की श्रेणी में आते हैं। इन नक्षत्रों में जन्मे बालक को सामान्यत: किसी न किसी प्रकार की कठिनाई से गुजरना पड़ता है। आरंभिक काल में स्वास्थ्य, पीड़ा, शिक्षा, आर्थिक परेशानी, माता-पिता, बंधु, परिवारजनों, वाहन से संबंधित कष्टों का सामना करना पड़ता है। इसलिए मूल संज्ञक नक्षत्रों में जन्मे जातक की नक्षत्र शांति परम आवश्यक माना गया है।
अश्लेषा नक्षत्र का दोष नौ माह तक, मूल नक्षत्र का आठ वर्ष तक, ज्येष्ठा का 15 माह तक दोष रहता है। इसके पूर्व ही नक्षत्र शांति करवा लेना चाहिए। बड़े मूल नक्षत्र (अश्लेषा, ज्येष्ठा, मूल) में जन्मे जातक की शांति 27वें दिन पुन: उसी नक्षत्र के आने पर करवाना चाहिए तथा हल्के मूल नक्षत्र (मघा, रेवती, अश्विनी) की शांति 12वें दिन शुभ मुहूर्त में करवाना चाहिए। मूल संज्ञक नक्षत्रों के प्रभावों को तालिका से संक्षिप्त रूप से जाना जा सकता है।
तीन कन्या के बाद पुत्र या तीन पुत्रों के बाद कन्या जन्म त्रिकदोष कहलाता है। इसकी भी शांति करवाना चाहिए। नक्षत्र का नाम सुनकर भयभीत या डरने की आवश्यकता नहीं है, यह सामान्य प्रक्रिया है। ईश्वर के हाथ में है, मनुष्य के हाथ में नहीं।
जिस प्रकार बारिश से बचने के लिए छाता/रेनकोट का उपयोग करते हैं तथा उसके प्रभाव से बचा जा सकता है। ठीक उसी प्रकार नक्षत्र शांति उपाय कर नक्षत्रों के कुप्रभाव से बचा जा सकता है तथा अच्छे फलों को प्राप्त किया जा सकता है।
महाकवि गोस्वामी तुलसीदासजी का जन्म भी मूल नक्षत्र में हुआ था। मूल संज्ञक नक्षत्रों में जन्मे बालक किसी क्षेत्र विशेष में पारंगत होते हैं। किसी कार्य को करने की उनमें धुन सवार होती है। केवल उन्हें सही मार्गदर्शन और प्रेरणा देनेवाले की आवश्कता होती है।

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