सोमवार, 23 नवंबर 2009

यात्रा और ज्योतिष - कविता चैतन्य

यह सभी जानते हैं कि मई-जून में यात्राओं का दौर जोरों पर रहता है। बच्चों के स्कूल बंद होने के बाद तनावमुक्त होने के लिए लोग सपरिवार हिल स्टेशन, धार्मिक स्थल, गांवों आदि की यात्राओं का कार्यक्रम बनाते हैं। कभी-कभी यात्राओं का यह सफर मनोरंजक न होकर तनावयुक्त व दु:खद हो जाता है। परंतु शुभ समय को ध्यान रखकर मुहूर्त अनुसार यात्रा के लिए प्रस्थान किया जाए तो यात्रा मनोरंजनपूर्ण व सुखद होती है। साथ ही कुशलतापूर्वक घर में वापसी भी होती है।
यात्रा के समय मुहूर्तो में चंद्रबल, भरणी, भद्रा, योगिनी विचार, दिशाशूल आदि का विशेष ध्यान रखना श्रेयस्कर रहता है। तिथियों में षष्ठी, अष्टमी, द्वादशी, रिक्ता (चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी) को छोड़कर शेष तिथियां यात्रा में ग्राह्य है। अमृतसिद्धि या सर्वार्थसिद्धि योगों में तिथि विचार के बिना भी यात्रा की जा सकती है। नक्षत्रों में अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा और रेवती नक्षत्र में यात्रा श्रेष्ठ रहती है। यात्रा में चंद्रबल शुद्धि विशेष रूप से शुभ फलदायी होती है। इसके लिए राशियों का दिशाज्ञान होना आवश्यक है। जिस दिशा की राशि में चंद्रमा का गोचर हो उसी दिशा में चंद्रमा का वास होता है। चंद्रमा सदैव यात्रा में सम्मुख दाहिने होना चाहिए। बारह राशियों में अग्नि तत्व (मेष, सिंह, धनु) राशियां पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसलिए यदि चंद्रमा इन राशियों में हो तो पूर्व तथा उत्तर दिशा की यात्रा विशेष फलदायी होती है।
पृथ्वी तत्व (वृष, कन्या, मकर) राशियां दक्षिण दिशा का प्रतिनिधित्व करती हैं, इन राशियों में चंद्रमा का गोचर दक्षिण व पूर्व दिशा की यात्रा को शुभ करता है। यदि पंचक चल रहे हों तो दक्षिण दिशा की यात्रा से यथासंभव परहेज करना चाहिए। इसी प्रकार वायु (मिथुन, तुला, कुंभ) राशियां पश्चिम का नेतृत्व करती हैं। इन राशियों का चंद्रमा पश्चिम तथा दक्षिण दिशा की यात्रा को सुखद बनाता है। जल तत्व (कर्क, वृश्चिक, मीन) राशियां उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन राशियों का चंद्रमा उत्तर तथा पश्चिम दिशा की यात्रा फलदायी करता है।
सम्मुखे सोर्थलाभाय दक्षिणो सुखसम्पद:।
पश्चिमे प्राण सन्देहो वामे चन्द्रो धनक्षय:॥

अर्थात : सम्मुख चंद्रमा प्राय: सभी दोषों को शांत करने में सक्षम होता है। दाहिने हो तो सुख और धनलाभ तथा पीठ की ओर अथवा बाएं तरफ चंद्रवास हो तो कष्ट और धनहानि होती है। जब सपरिवार यात्रा करनी हो तो परिवार के मुखिया की राशि के आधार पर चंद्रबल का निर्धारण करना चाहिए। दिशाशूल के अनुसार सोमवार, शनिवार को पूर्व, रविवार और शुक्रवार को पश्चिम, मंगलवार व बुधवार को उत्तर तथा गुरुवार को दक्षिण दिशा का दिशाशूल होता है। अत: उक्तवारों को उन दिशाओं में यात्रा नहीं करनी चाहिए। परंतु यदि यात्रा अत्यावश्यक हो तो उस दिन का होरा के समय यात्रा नहीं करनी चाहिए अर्थात जैसे रविवार को पश्चिम दिशा में यात्रा करना जरूरी है तो रविवार की होरा में यात्रा शुरू नहीं करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त रविवार को पान और घी खाकर, सोमवार को दर्पण देखकर या दूध पीकर, मंगलवार को गुड़ खाकर, बुधवार को धनिया व तिल खाकर, गुरुवार को दही खाकर, शुक्रवार को दूध पीकर तथा शनिवार को अदरक या उड़द खाकर प्रस्थान किया जा सकता है।
योगिनी का भी यात्रा में विशेष विचार किया जाता है। तिथि विशेष के आधार पर दिशाओं में योगिनियों का वास माना जाता है। योगिनी बाएं तथा पीठ पीछे होने से यात्रा शुभ होती है। प्रतिपदा तथा नवमी तिथियों को योगिनी का वास पूर्व दिशा में होता है। तृतीय व एकादशी को अग्निकोण (पूर्व-दक्षिण) में, पंचमी व त्रयोदशी को दक्षिण में, चतुर्थी व द्वादशी को नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) में, षष्ठी व चतुर्दशी को पश्चिम दिशा में, सप्तमी व पूर्णिमा को वायव्य कोण (पश्चिम-उत्तर) में, द्वितीय व दशमी को उत्तर दिशा में तथा अष्टमी व अमावस्या को ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में होता है।
इन सबके अतिरिक्त यदि किसी आकस्मिक कारणवश तुरंत यात्रा करनी पड़े तो यात्रा मुहूर्त के अनुसार करें।
जोइ स्वर चले सोई पग दीजे
भरणी भद्रा एक न लीजे।
अर्थात: आपकी जिस नासिका से श्वांस तेज निकल रही हो वही कदम पहले आगे बढ़ाएं। साथ ही मानस की यह चौपाई पढ़ें।
प्रबिसि नगर कीजे सबकाजा।
हृदय राखि कोसलपुर राजा॥
अर्थात: भगवान राम को प्रणाम करके यात्रा करें आपकी यात्रा सुखद रहेगी।

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