मंगलवार, 31 मई 2011
मंदिर जाने से पहले अपवित्र हो जाए तो क्या करें?
सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक दिनभर में हम कई कार्य करते हैं। ऐसे में कभी-कभी कुछ गलत कार्य भी हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार कई ऐसे कार्य बताए गए हैं, जिनसे हम अपवित्र हो जाते हैं। इस परिस्थिति में हम कोई धार्मिक कर्म, पूजा आदि नहीं कर सकते। यहां गलत कार्य का अर्थ यही है कि कुछ ऐसे कर्म जिनसे हमारा शरीर अपवित्र हो जाता है।
शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान से जुड़े किसी कर्म के लिए हमें पूर्णत: पवित्र होना चाहिए। यदि किसी भी प्रकार से हम अपवित्र हो जाते हैं तो पूजन आदि कर्म में शामिल होना वर्जित किया गया है। ऐसी अवस्था में किसी भी देवस्थान या मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए।
यदि जाने-अनजाने ऐसे कोई कार्य हमसे हो जाए तो हम अपवित्र हो जाते हैं, जैसे- यदि किसी अन्य व्यक्ति का थूक हम पर गिर जाए या भूलवश हम किसी अन्य व्यक्ति पर थूक दें, यदि कोई जानवर हमें जीभ लगा दे, किसी व्यक्ति को हमारा पैर लगने पर या अन्य व्यक्ति का पैर हमें लगने पर, अपवित्र वस्तु से छू जाने पर, छींकने पर आदि ऐसे कर्मों से हम पवित्र हो जाते हैं। साथ ही धर्म के अनुसार कुछ कार्य अधार्मिक बताए गए हैं, उनसे भी दूर रहना चाहिए। ऐसी अवस्था में पूजन आदि कार्य निषेध किए गए हैं।
शास्त्रों के अनुसार इन सभी दोषों से मुक्ति के लिए सूर्य का दर्शन करें। साथ ही अपने दाहिने कान को छुने से दोष समाप्त हो जाता है तथा पवित्रता प्राप्त होती है। किसी भी देवस्थान या मंदिर में प्रवेश से पूर्व अच्छे से हाथ-पैर, मुंह आदि धो लेना चाहिए। साथ ही भगवान से क्षमा याचना करनी चाहिए। रात के समय दाहिने कान को छू कर अपने इष्टदेव का स्मरण करें।
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धर्म
ये पेड़-पौधे बचाते हैं शनि के अशुभ प्रभाव से
1 जून 2011, बुधवार को शनि जयंती है। इस अवसर पर विशेष प्रयोग कर आप शनिदेव को प्रसन्न कर सकते हैं। कुछ विशेष पेड़-पौधों की जड़ों व माला धारण करने से शनि का बुरा प्रभाव कम होता है। नीचे ऐसे ही कुछ पेड़-पौधों की जानकारी दी गई है। इन उपायों को करने से आपके जीवन से शनि संबंधी परेशानियां समाप्त हो जाएंगी।
उपाय
- लाल चंदन की माला को अभिमंत्रित कर शनिवार या शनि जयंती के दिन पहनने से शनि के अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं।
- शमी वृक्ष की जड़ को विधि-विधान पूर्वक घर लेकर आएं। शनिवार के दिन श्रवण नक्षत्र में या शनि जयंती के दिन किसी योग्य विद्वान से अभिमंत्रित करवा कर काले धागे में बांधकर गले या बाजू में धारण करें। शनिदेव प्रसन्न होंगे तथा शनि के कारण जितनी भी समस्याएं हैं, उनका निदान होगा।
- काले धागे में बिच्छू घास की जड़ को अभिमंत्रित करवा कर शनिवार के दिन श्रवण नक्षत्र में या शनि जयंती के शुभ मुहूर्त में धारण करने से भी शनि संबंधी सभी कार्यों में सफलता मिलती है।
- पीपल के पेड़ पर प्रतिदिन जल चढ़ाने और दीपक लगाने से भी शनिदेव प्रसन्न हो जाते हैं।
दैनिक भास्कर से साभार
ॐ के उच्चारण का रहस्य
ॐ को ओम लिखने की मजबूरी है अन्यथा तो यह ॐ ही है। अब आप ही सोचे इसे कैसे उच्चारित करें? ओम का यह चिन्ह 'ॐ' अद्भुत है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है। बहुत-सी आकाश गंगाएँ इसी तरह फैली हुई है। ब्रह्म का अर्थ होता है विस्तार, फैलाव और फैलना। ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं। यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है।
आइंसटाइन भी यही कह कर गए हैं कि ब्राह्मांड फैल रहा है। आइंसटाइन से पूर्व भगवान महावीर ने कहा था। महावीर से पूर्व वेदों में इसका उल्लेख मिलता है। महावीर ने वेदों को पढ़कर नहीं कहा, उन्होंने तो ध्यान की अतल गहराइयों में उतर कर देखा तब कहा।
ॐ को ओम कहा जाता है। उसमें भी बोलते वक्त 'ओ' पर ज्यादा जोर होता है। इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं। यही है √ मंत्र बाकी सभी × है। इस मंत्र का प्रारंभ है अंत नहीं। यह ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है। अनाहत अर्थात किसी भी प्रकार की टकराहट या दो चीजों या हाथों के संयोग के उत्पन्न ध्वनि नहीं। इसे अनहद भी कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड में यह अनवरत जारी है।
तपस्वी और ध्यानियों ने जब ध्यान की गहरी अवस्था में सुना की कोई एक ऐसी ध्वनि है जो लगातार सुनाई देती रहती है शरीर के भीतर भी और बाहर भी। हर कहीं, वही ध्वनि निरंतर जारी है और उसे सुनते रहने से मन और आत्मा शांती महसूस करती है तो उन्होंने उस ध्वनि को नाम दिया ओम।
साधारण मनुष्य उस ध्वनि को सुन नहीं सकता, लेकिन जो भी ओम का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है। फिर भी उस ध्वनि को सुनने के लिए तो पूर्णत: मौन और ध्यान में होना जरूरी है। जो भी उस ध्वनि को सुनने लगता है वह परमात्मा से सीधा जुड़ने लगता है। परमात्मा से जुड़ने का साधारण तरीका है ॐ का उच्चारण करते रहना।
*त्रिदेव और त्रेलोक्य का प्रतीक :
ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का प्रतीक है।
*बीमारी दूर भगाएँ : तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है। देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है। उदाहरण के तौर पर कं, खं, गं, घं आदि। इसी तरह श्रीं, क्लीं, ह्रीं, हूं, फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों में गिने जाते हैं।
सभी मंत्रों का उच्चारण जीभ, होंठ, तालू, दाँत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है।
*उच्चारण की विधि : प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। ॐ जप माला से भी कर सकते हैं।
*इसके लाभ : इससे शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलेगी। दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा। इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं। काम करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसका उच्चारण करने वाला और इसे सुनने वाला दोनों ही लाभांवित होते हैं। इसके उच्चारण में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है।
*शरीर में आवेगों का उतार-चढ़ाव :
प्रिय या अप्रिय शब्दों की ध्वनि से श्रोता और वक्ता दोनों हर्ष, विषाद, क्रोध, घृणा, भय तथा कामेच्छा के आवेगों को महसूस करते हैं। अप्रिय शब्दों से निकलने वाली ध्वनि से मस्तिष्क में उत्पन्न काम, क्रोध, मोह, भय लोभ आदि की भावना से दिल की धड़कन तेज हो जाती है जिससे रक्त में 'टॉक्सिक' पदार्थ पैदा होने लगते हैं। इसी तरह प्रिय और मंगलमय शब्दों की ध्वनि मस्तिष्क, हृदय और रक्त पर अमृत की तरह आल्हादकारी रसायन की वर्षा करती है।
- Shatayu
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धर्म
सोमवार, 21 मार्च 2011
वास्तु दोष दूर करेंगे नक्काशीदार बर्तन
भारतीय कला जहाँ एक ओर वैज्ञानिक और तकनीकी आधार रखती है, वहीं दूसरी ओर भाव एवं रस को सदैव जीवंत रखती है। आजकल घर के कामकाज में प्रयोग होने वाले बर्तनों पर अब वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नक्काशी की जाने लगी है।
इन कुछ खास बर्तनों में पीतल के बर्तन घर का वास्तुदोष दूर करेंगे। इन बर्तनों की नक्काशी इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर बनाई जाती है। इसके अलावा इनके आकार पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। साथ ही यह भी बताया जाता है कि घर के किस हिस्से में रखने पर वास्तुदोष कम होगा।
पीतल के बर्तन वैसे भी शुभ माने जाते हैं। पीतल के बड़े आकार के इन बर्तनों पर भगवान के सूक्ष्म रूप की नक्काशी की गई है जो काफी शुभ मानी जाती है। यह सूक्ष्म नक्काशी वास्तुदोष को दूर कर घर को सुख-समृद्धि से भर देती है। इन्हें घर की दीवारों और दरवाजों पर रखा जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से ये बर्तन इतने शुभ हैं कि लोग इनमें गेहूँ-चावल भरकर अपने घरों में रखते हैं। इससे घर में धन-धान्य की बरकत बनी रहती है। अधिकतर लोग इन बर्तनों को कला की दृष्टि से भी खरीदते हैं। वर्तमान में बाजार में वास्तुनुरूप उपलब्ध इन बर्तनों पर कारीगरी का अद्भुत नमूना देखते ही बनता है।
सौजन्य से - वेबदुनिया।
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