गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

ऋषि पूजन से पाएं बुद्धि, पद और प्रतिष्ठा - डॉ. श्रीकृष्ण

भारत को ऋषियों की भूमि कहा जाता है। महर्षि कश्यप के कारण ही सर्ग या सृष्टि का विकास हुआ। विष्णु पुराण, मरकडेय और मत्स्यपुराण में ऋषियों के सर्ग का विवरण है। इन्हीं ऋषियों ने ब्रrा से प्राप्त ज्ञान की विभिन्न शाखाओं को उन्नत किया।

जीवन में ऋषितुल्य बुद्धि, पद व प्रतिष्ठा पाने के लिए ऋषि पंचमी पर सात ऋषियों की आराधना करनी चाहिए। इस दिन दूब, सांवा और मलीची नामक वनस्पति घास के प्रतीकात्मक पुतले बनाकर उनको पूजना चाहिए और व्रत रखना चाहिए। हो सके तो इस दिन किसी भी रूप में अन्न का आहार नहीं लें।

भारत को ऋषियों की भूमि कहा जाता है। मित्रावरुण और उनके पुत्र अगस्त्य एवं वशिष्ठ ने जिस ऋषि प्रज्ञा की नींव डाली, वह इस संस्कृति को उन्नत करने वाली रही। एक दौर में तो महर्षि कश्यप के कारण ही सर्ग या सृष्टि का विकास हुआ। विष्णु पुराण, मरकडेय और मत्स्य पुराण में ऋषियों के सर्ग का विवरण है।

इन्हीं ऋषियों ने हमारे यहां ब्रrा से प्राप्त ज्ञान की विभिन्न शाखाओं को उन्नत किया। महर्षि भारद्वाज के ‘यंत्र सर्वस्व’ में विभिन्न ऋषियों के अनुसंधान से विमान विद्या, जल विद्या, वाष्प विद्या, स्वचालित यंत्र विधा जैसे दर्जनों विज्ञानों के विकास की जानकारी मिलती है।

वायु पुराण के मतानुसार वास्तु ग्रंथ समरांगण सूत्रधार के महासर्गादि अध्याय में वृक्षों के साथ रहने वाले मानव समुदाय के विज्ञान सम्मत विकास का वर्णन है, जिन्होंने कभी देव रूप में तो कभी ऋषि रूप में अनुभव लिया।

उन्होंने सर्वप्रथम अनाज के रूप में सांवा (शाली तंडुल) को आहार के रूप में लिया और ज्ञानार्जन में अपने को लीन किया। हालांकि वे बाद में भूरस के स्वाद के कारण उच्छृंखल होते गए। इसलिए ऋषि पंचमी को ऋषिधान्य के रूप में सांवा की खिचड़ी (कृसरान्न) या खीर बनाकर आहार किया जाता है।

अपने परिवार में पुत्र-पुत्रियों के ऋषिप्रज्ञा होने की कामना से सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है। एक प्रकार से यह ऋषियों की प्रज्ञा को सम्मान देने का स्मृति पर्व है। इसलिए अंगिरा, गर्ग आदि का पूजन भी किया जाना चाहिए। दूब, सांवा, मलीची नामक घास को एकत्रित कर तृणों के सात पुंज या समूह बनाएं और प्रत्येक पुंज पर लाल कपड़ा अथवा मौली लपेटें। पूजा स्थल पर इन्हें दूध, जल से स्नान करवाएं और धूप, दीप कर खीर अर्पण करें।

इस अवसर पर बृहस्पति, गर्ग, भारद्वाज, विश्वामित्र, विश्वकर्मा आदि का स्मरण करें। जो ऋषि जिस विद्या से संबंधित हो और अपना परिवार जिस विद्या से धनार्जन करता हो, उस ऋषि का पूजन करने से संबंधित कार्य में दोगुने लाभ, पद, पदोन्नति और यश की प्राप्ति होती है।

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