शनिवार, 19 दिसंबर 2009

महायोगों के धनी भगवान झूलेलाल

अधर्म पर धर्म की विजय पताका फहराने के लिए भगवान ने समय-समय पर अवतार लिया है और आसुरी शक्तियों का संहार करके दुनिया को शांति का संदेश दिया है। दसवीं शताब्दी में जब सिंध (पाकिस्तान) प्रांत के क्रूर सम्राट मिरखशाह ने अधर्म और अत्याचार को बढ़ावा दिया तब सनातन धर्मियों ने सिंधु नदी के तट पर उपवास रखकर वरुण देवता की श्रद्धा भावना से आराधना की।

उनकी आराधना से वरुण देव का मन द्रवित हो उठा। तब नदी की लहरों पर विशाल मछली पर विराजमान, हाथ में माला तथा वेद ग्रंथ लिए एक ब्रrा स्वरूप दिव्य पुरुष दृष्टिगोचर हुए और आकाशवाणी द्वारा अपने प्रकट होने का समाचार सुनाया।

आकाशवाणी के अनुसार विक्रम संवत 1007 ईसवी सन् क्९५१ तदनुसार चैत्र शुक्ल द्वितीय, दिन शुक्रवार, भरणी नक्षत्र में ग्राम नसरपुर जिला सिन्ध (पाकिस्तान) के श्री रतनराय के घर में माता देवकी के गर्भ से भगवान झूलेलाल ने जन्म लिया। इनके जन्म के समय सूर्य कुंडली में लग्न में सूर्य बुध, द्वितीय भाव में चंद्रमा, चतुर्थ भाव में मंगल केतु और सप्तम भाव में शनि विराजमान थे जबकि नवम भाव (भाग्य भाव) में बृहस्पति, दशम (कर्म) भाव में राहु तथा द्वादश भाव में शुक्र बैठे थे।

भगवान झूलेलाल की जन्म कुंडली में ग्यारह महान कर्मजीव योग बने। सूर्य और चंद्र, दोनों कुंडलियों में ६३ महायोगों का निर्माण हुआ। दैवीय शक्ति के बल पर यह बालक शीघ्र जवान हो गया। कुंडली में बने तमाम शुभ योगों के परिणामस्वरूप यह बालक तरह-तरह के चमत्कार दिखाने लगा। महान कर्मजीव योगों के प्रभाव से इन्होंने दुष्ट सम्राट मिरखशाह को इतने चमत्कार दिखाए कि मिरखशाह और उसके अनुयायी भयभीत हो गए। राज्य में महामारी फैल गई, जिसका प्रभाव सिर्फ सम्राट तथा उसके अनुयायियों पर ही हुआ।

चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। इससे घबराकर मिरखशाह और उसके अनुयायियों ने भगवान झूलेलाल के चरणों में गिरकर आत्मसमर्पण कर दिया और क्षमायाचना करने लगे। इस तरह शांति का संदेश देकर भगवान झूलेलाल ने संवत १क्२क् में, भादों के महीने, पूर्णिमा के दिन अपने शिष्य ठाकुर पगर को अपना स्थान सौंपकर हजारों हिन्दु-मुसलमानों के सामने जल समाधि ले ली।

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