शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

अभय बनाएं काल भैरव

कालभैरव अष्टमी.भय का हरण करे, वह भैरव - भयहरणं च भैरव:। भैरव की महिमा शास्त्रों में मिलती है। भैरव को जहां शिव के गण के रूप में स्वीकारा गया है, वहीं वे दुर्गा के आगे-पीछे चलने वाले अनुचारी भी माने गए हैं। करोड़ों परिवारों में भैरव की कुलदेवता के रूप में पूजा की जाती है, जो परिवार में सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और संबल प्रदान करते हैं।

तंत्र के महान देवता : भूतभावन शिव ने उन्हें वाराणसी में कोतवाल नियुक्त किया। अत: वे प्रथम स्मरणीय भी हुए। तुलसीदास ने विनय पत्रिका में उनकी वंदना की है। भैरव को उनके अनेक गुणों के कारण ही तंत्र में महान देवता बताया गया है। ग्रंथों में लिखा है कि गृहस्थ को सदा भैरव के सात्विक ध्यान को प्राथमिकता देनी चाहिए।

मंगल जन्य दोषों के निवारक : स्त्री-पुरुषों की कुंडली में उच्च, नीच मंगल से होने वाले समस्त दोषों का निवारण भैरव को प्रसन्न करने से हो सकता है। महिलाओं की ल्यूकोरिया-प्रदर सहित कई रोगों, मानसिक व्याधियों, तनाव-अवसाद, हिस्टीरिया, उन्माद जैसी बीमारियों का निवारण भैरव की सेवा-साधना से सहज ही संभव है। वैसे जिनको मंगल जन्य कष्ट हो, वे भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, बटुक भैरव ब्रrा कवच, भैरव स्तवराज, भैरव पंजर कवच आदि का नियमित पाठ कर लाभान्वित हो सकते हैं। भैरव कवच का पाठ अकाल मृत्यु, दीर्घ व्याधियों का निवारण करने में भी समर्थ है।

नाम जप से कई बाधाओं से मुक्ति :

कालभैरव के नाम जप से अनेक रोगों से मुक्ति संभव है। वे संतानदाता और आयुवर्धक हैं। एक सौ आठ नामों का नित्य पारायण कई भक्त करते हैं और लाभ उठाते हैं। जिनके घर में प्रेत बाधा या नित्य कलह की आशंका हो, शत्रु परेशानी हो, वहां शनिवार या मंगलवार को भैरव पाठ, काल संकर्षण तंत्रोक्त बटुक भैरव अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र का पारायण करने से इन झंझटों से मुक्ति पाई जा सकती है। भैरव के अनेक स्तोत्र पाठों में रं, कं, गं, भं, क्षं, वै आदि बीजाक्षर मिलते हैं, जिनका उच्चरण बहुत ध्यानपूर्वक करना चाहिए।

पं. पुष्कर राज

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