शनिवार, 21 नवंबर 2009

रमल ज्योतिष से जोड़ी मिलान - डॉ.नरेंद्र कुमार

अरबी ज्योतिष. milan
विवाह के पूर्व कुंडली मिलान एक ऐसा कार्य है जो लगभग सभी हिंदू परिवारों में किया जाता है। कभी-कभी वर अथवा वधु की कुंडली न होने पर जोड़ी मिलान मुश्किल कार्य होता है। इसका समाधान रमल ज्योतिष से किया जा सकता है, इसमें फलादेश की विधि पांसे पर आधारित है।
रमल शास्त्र में जातक की कुंडली मिलाने का एक विशेष विधान है, जो सप्तम घर से संबंधित रहता है, इसका प्रारंभ पांसे के द्वारा किया जाता है। रमल शास्त्र की शब्दावली को ‘मिलाने-उल-रमल’ के नाम से जाना जाता है। इसमें जातक को स्वयं अथवा उनके माता-पिता को रमलाचार्य के समक्ष प्रश्न करना होता है कि इन दो जातकों की कुंडली मिलाने से शुभ-विवाह का योग बनता है अथवा नहीं।
यदि विवाह होता है तो उनका दांपत्य जीवन कैसा रहेगा? रमल ज्योतिष शास्त्र में यदि जायचे के सप्तम घर में और अन्य घरों के साथ ही भाग्य स्थान में शुभ शक्लें (आकृति) बराबर हों, साथ ही ‘नजर-ए-मिकारना’ हो तो जातक की जन्म कुंडली यानी कि विवाह के लिए भाग्य की स्थिति शुभ व लाभजनक होती है। यानी कि दांपत्य जीवन अंतिम चरण तक मधुर और स्नेहकारी रहेगा।
जातक को ससुराल पक्ष से शारीरिक, मानसिक और आर्थिक लाभ समयानुसार होता रहेगा, साथ ही शांति और सम्मान भी प्राप्त होगा। जातक को संतान की प्राप्ति होगी और संतान को धन प्राप्त होगा। जातक के परिवार में शोक की स्थिति पैदा नहीं होगी और न ही मन उदास होगा। यदि जातक के सप्तम घर में अशुभ शक्लें व भाग्य भाव में भी अशुभ शक्लें हों।
साथ ही निकटवर्ती और दूरवर्ती साक्षी हो तो परिवार में मानसिक परेशानी होगी और बराबर लाभ प्राप्त नहीं होगा। इस स्थिति में विवाह में देरी हो सकती है और परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। जातक का मन उदासीन होगा और ससुराल पक्ष की ओर से सुख-शांति प्राप्त होने की संभावना कम होगी। इस हालत में जातक को मानसिक परेशानी बनी रहेगी।
यदि जातक के सप्तम घर में शक्ल लहियान हो, जो कि गुरु ग्रह की शक्ल है और धनु राशि से संबंधित है। इस शक्ल में एक बिंदु निर्धारित स्थिति में और तीन रेखाएं निर्धारित प्रक्रिया में होती हैं, जबकि नक्षत्र मूल और नक्षत्र पूर्वाषाढ़ से संबंधित हैं।
यह रमल शास्त्र के प्रस्तार यानी कि जायचे के विरोधी तत्व घर में आई है, जो पूर्णत: बलहीन है और कई स्थिति में यह समय-समय पर निर्बलता भी प्रदर्शित करती है। प्रश्न पूछने की यह सारी कार्यप्रणाली रमल विद्वान के समक्ष होती है। यदि विद्वान के समक्ष जातक न हो तो ‘प्रश्न-फॉर्म’ के माध्यम से भी यह कार्य किया जा सकता है।

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