शनिवार, 21 नवंबर 2009

आयुर्वेद और तंत्रशास्त्र में रावण का योगदान

दशानन dashananअपने युग के प्रकांड पंडित ही नहीं, वैज्ञानिक भी थे। आयुर्वेद, तंत्र और ज्योतिष के क्षेत्र में उनका योगदान महत्वपूर्ण है। इंद्रजाल जैसी अथर्ववेद मूलक विद्या का रावण ने ही अनुसंधान किया। उनके पास सुषेण जैसे वैद्य थे, जो देश-विदेश में पाई जाने वाली जीवन रक्षक औषधियों की जानकारी स्थान, गुण-धर्म आदि के अनुसार जानते थे।
चिकित्सा और तंत्र के क्षेत्र में रावण के ये ग्रंथ चर्चित हैं-
1. दस शतकात्मक अर्कप्रकाश, 2. दस पटलात्मक उड्डीशतंत्र, 3. कुमारतंत्र, और 4. नाड़ीपरीक्षा।
रावण ने अंगूठे के मूल में चलने वाली धमनी को जीवननाड़ी बताया है जो सर्वाग-स्थिति व सुख-दु:ख को बताती है। उनका निर्देश है कि औरतों में वाम हाथ व पांव तथा पुरुषों में दक्षिण हाथ व पांव की नाड़ियों का परीक्षण करना चाहिए। यह परीक्षण तीन अंगुलियों से होता है।
नाड़ियां तीन प्रकार की होती हैं। तर्जनी के नीचे चलने वाली पहली नाड़ी वात व्याधि को, मध्यमा अंगुली के नीचे चलने वाली दूसरी नाड़ी पित्त व्याधि को और तीसरी अंगुली के नीचे प्रवाहमान अंतिम नाड़ी कफ जन्य व्याधि को बताती है। इन्हीं के आधार पर समस्त रोगों के पूर्व-वर्तमान लक्षण और भविष्य कथन संभव हैं।
शिशु-स्वास्थ्य योजना का विचारक ‘अर्कप्रकाश’ को रावण ने मंदोदरी के प्रश्नों के उत्तर के रूप में लिखा है। इसमें गर्भस्थ शिशु को कष्ट, रोग, काल, राक्षस आदि व्याधियों से मुक्त रखने के उपाय बताए गए हैं। लता, गुल्म, शाखा, पादप और प्रसर के रूप में मिलने वाली सैकड़ों औषधियों का उपयोग करने की विधियां भी इसमें हैं।
इसी प्रकार ‘कुमारतंत्र’ में मातृकाओं को पूजा आदि देकर घर-परिवार को स्वस्थ रखने का वर्णन है। इसमें चेचक, छोटीमाता, बड़ी माता जैसी मातृ व्याधियों के लक्षण व बचाव के उपाय बताए गए हैं।
इसमें नंदना, सुनंदा, पूतना, मुखमंडिका, कंटपूतना, शकुनिका, शुष्करेवती, आर्यका, भूसूतिका, निर्ऋता, पिलिपिच्छा, कामुका जैसी मातृकाओं के मंत्रों को भी लिखा गया है। इनमें से कुछ मातृकाएं वास्तुपुरुष के साथ की हैं जिनकी शांति के उपाय मयमतम्, अपराजितपृच्छा, राजवल्लभ आदि वास्तुग्रंथों में भी मिलते हैं।

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