मंगलवार, 12 जनवरी 2010

धर्म से ज्योतिष तक पूज्य नाग

सूर्य, गौ, वृक्ष, नदी की तरह सर्प भी प्रत्यक्ष देवता हैं। प्राय: बाकी देवता जिनकी परिकल्पना हमारे शास्त्रों ने की है उनका स्वरूप कल्पित है किंतु सर्प साक्षात दर्शन देते हैं। जल की भांति सर्प की उपस्थिति धरती से आकाश तक स्वीकारी गई है। संभवत: पूरी सृष्टि पर एकमात्र सर्प ही हैं जो जल, थल, वृक्ष, झाड़ियों, पहाड़ों, बर्फ, बिल, खेत आदि हर स्थान पर अपना अस्तित्व सिद्ध करते हैं। इतिहास में नाग राजाओं का उल्लेख है तो पुराणों में नाग कन्याओं से कई नायकों-प्रतिनायकों के विवाह या प्रेम संबंधों की चर्चा आती है। नागों का लोक पाताल माना गया है।

इतिहास और पुराण सहित धर्म की सभी धाराओं तथा ज्ञान की शाखाओं में सर्प की चर्चा किसी न किसी रूप में उपलब्ध है जो सर्पो की चिरकालिकता को प्रदर्शित करती है। यही कारण है कि सर्प प्रारंभ से पूजनीय माने गए हैं और उनकी पूजा के निमित्त भारतीय मनीषा में श्रावण शुक्ल पंचमी का दिन निश्चित किया गया है। पौराणिक, ऐतिहासिक संदर्भो के साथ सर्प के रहस्यमय शारीरिक स्वरूप और उसकी विषधारी वृत्ति ने कालांतर में कई लौकिक-अलौकिक, रहस्य-इंद्रजाल से भरी कथाओं को जन्म दिया और लोकमानस में सर्प के प्रति एक अजीब से भय को भी स्थापित कर दिया। परिणाम यह कि आज भी सर्प हमारे लिए भय, आश्चर्य और रहस्य का केंद्र बने हुए हैं। इसीलिए धर्मालु भारतीय सर्प की पूजा कर उसके संभावित क्रोध से मुक्ति के उपाय खोजते हैं।

श्रावण शुक्ल पंचमी को नागपंचमी के रूप में सर्प की पूजा के पीछे हमारी अर्थव्यवस्था का दर्शन भी जुड़ा हुआ है। ये दिन बारिश के होते हैं और इसी दौरान खेतों में काम चलता है। आषाढ़ की रिमझिम वर्षा धरती को भिगों पाती है लेकिन जब श्रावण में वर्षा अपना रंग दिखाती है और सर्प के बिल पानी से भर जाते हैं तब सर्प बिल से निकलकर खेतों में आ जाते हैं। तब हमारे सामने दो विकल्प होते हैं - भयभीत होकर सर्प को मार दिया जाए या बड़ी होती फसल की कीटों-चूहों से रक्षा के लिए उसे पर्यावरण का एक अभिन्न अंग स्वीकार कर छोड़ दिया जाए। भारतीय दूसरा विकल्प स्वीकारते हैं और सर्प की पूजा कर उसे अपना मित्र बना लेते हैं। इसीलिए इन्हीं दिनों सर्प की पूजा पंचमी के बहाने की जाती है।

जहां तक ज्योतिष का प्रश्न है, सर्प यहां भी उपस्थित हैं। नवग्रहों में राहु के दोष से पीड़ित सर्प का पूजन करते हैं। ज्योतिष कहता है कि हर ग्रह के दो देवता होते हैं। उदाहरणार्थ सूर्य के अधिदेवता ईश्वर हैं और प्रतिदेवता अग्नि। ठीक इसी तरह राहु के अधिदेवता काल और प्रतिदेवता सर्प माने गए हैं। यही कारण है कि जिन लोगों की कुंडली में राहु के दोष होता है उन्हें अधिदेवता काल और प्रतिदेवता सर्प की पूजा कर कालसर्प दोष को दूर करने का उपाय करना पड़ता है। राहु दोष में जिस कालसर्पदोष की चर्चा है उसका आशय है कि यदि वह दोष है तो मनुष्य का स्वभाव चंचल हो जाता है। यानी उसके कार्य विघ्न वाले होते हैं और उसकी निर्णय क्षमता प्रभावित होती है। तब सर्पदोष के निदान के लिए सर्प के उपाय सुगंधित श्वेत वस्तुएं और नैवेद्य चढ़ाकर दोष का शमन करने की परंपरा है।

कहते हैं यदि किसी की कुंडली में कोई दोष हो तो उसे साक्षात ब्रrा भी दूर नहीं कर सकते, किंतु उपायों के माध्यम से उसका शमन अवश्य किया जा सकता है। आशय है कि ज्योतिष में सर्प है। राहु के साथ भी और नक्षत्रों के संदर्भ में भी। 27 नक्षत्रों में अश्लेषा नक्षत्र के देवता के रूप में भी सर्प उपस्थिति दर्ज कराते हैं। अश्लेषा का स्वामी सर्प ही माना गया है। ठीक इसी तरह बारिश के दिनों में सूर्य जब रोहिणी से हस्त नक्षत्र के बीच गमन करता है तो इन नक्षत्रों में एक का वाहन सर्प भी होता है और इन्हीं वाहनों से ज्योतिषी वर्षा का होना, न होना, कम या ज्यादा होना आदि का आकलन करते हैं।

इतिहास, पुराण, वास्तु, धर्म, ज्योतिष आदि के संदर्भ भले किसी ठोस वैज्ञानिक आधार के साथ सर्प के स्वरूप, स्वभाव पर फोकस न करें, लेकिन नागपंचमी को सर्पपूजन की परंपरा उसके प्रति आस्था और उसे अपने प्राकृतिक मित्र समझने की परंपरा के पीछे ठोस आधार अवश्य हैं और वह यह कि सर्प भी इस सृष्टि की प्राणी हैं और सृष्टि के सौदंर्य का अंग। हम लाठी उठाएं तो वह शत्रु हैं और शीश झुकाए तो मित्र, देवता। बेहतर होगा हम उसे मित्र मानकर देवता के आसन पर ही रखकर पूजे।


विवेक चौरसिया

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

bahut achchhi jankari he dhanwad

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