रविवार, 6 दिसंबर 2009

स्वर ज्ञान से पाएं तेजोमयी शक्तिरूपा पुत्री

आज संपूर्ण विश्व पुरुष व स्त्री में समान हक व नेतृत्व की बात कर रहा है। भारत में भी पहल हो रही है। जातक ग्रंथकार के रूप में प्रसिद्ध ज्योतिर्विद आचार्य वराहमिहिर, यवनाचार्य मीनराज एवं कल्याण वर्मा ने संस्कारी व प्रतापी संतानोत्पति को लेकर अपने ग्रंथों में कहा है कि तिथि, वार, नक्षत्र लग्न का ध्यान रखकर ही पुरुष व स्त्री को यह गर्भाधान यज्ञ पूर्ण करना चाहिए।

इस विषय में स्वरोदय शास्त्र निर्धारित दिन व स्वर ज्ञान से ही विशिष्ट, बली, तेजस्वी व मनवांछित संतान प्राप्ति की जानकारी देता है।

महान, वैभवशाली व देश को नेतृत्व प्रदान करने वाली पुत्री की इच्छा रखने वाले पुरुषों को चाहिए, कि वे पत्नी को अपने दाएं तरफ शयन कराएं। इस प्रकार शयन करने से पुरुष दायीं करवट से व स्त्री बायीं करवट से एक-दूसरे को देखेंगे।

उस समय अपना स्वर परीक्षण करेंगे तो देखेंगे कि पुरुष का चंद्र स्वर (बायां) व स्त्री का सूर्य स्वर (दायां) चल रहा होगा। यही पहला ध्यान रखना होगा।

दूसरा ध्यान पुरुष को यह रखना है, कि अपनी पत्नी के रजस्वला होने की प्रथम रात्रि से गिनकर सिर्फ नवम एवं पंद्रहवीं रात्रि को ही समागम करें। ऐसे गर्भाधान यज्ञ से प्राप्त पुत्री संतान आपका, परिवार का, प्रांत व अपने देश का नाम अवश्य ही रोशन करेगी।

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