शनिवार, 21 नवंबर 2009

मांगलिक कार्यो के लिए वर्जित धनु मलमास - डॉ. शालिनी सक्सेना

हमारी संस्कृति में विवाह संस्कार को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस संस्कार एवं अन्य धार्मिक कार्यो के पवित्र उद्देश्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न न हो, इसके मांगलिक कार्यो के लिए वर्जित धनु मलमासलिए मुहूर्त का दोषरहित होना अनिवार्य है।
विवाह में गुरु-शुक्र का अस्त, वृद्धत्व, बाल्यकाल निषिद्ध माना जाता है। जब गुरु शुक्र, सूर्य के प्रभाव में आ जाते हैं तो प्रभावहीन हो जाते हैं। सामान्यत: अस्त से तीन दिन पूर्व का काल वृद्धत्व व उदय से तीन दिन बाद तक का काल बाल्यकाल कहलाता है। विवाह मुहूर्त में सर्वप्रथम सूर्य, गुरु एवं चंद्र की स्थिति ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। अत: इनका प्रभाव संपन्न होना विवाह मुहूर्त के लिए अनिवार्य है।
लगभग ढाई वर्ष के अंतराल से आने वाले मलमास को विवाह आदि संस्कारों के लिए त्याज्य माना गया है। इसके साथ ही जब-जब गुरु सूर्य परस्पर एक-दूसरे की राशि में स्थित होते हैं, उस काल को भी विवाहादि धार्मिक संस्कारों के लिए त्याज्य माना गया है। गुरु तो लगभग बारह वर्ष बाद सूर्य की राशि सिंह में आता है और सिंहस्थ बृहस्पति में उपाकर्म, मुंडन, उपनयन, विवाह, तीर्थयात्रा, गृहारंभ, गृहप्रवेश, देवप्रतिष्ठा, यज्ञकर्म, काम्यकर्म आदि कार्यो का निषेध किया गया है। गुरु तो बारह वर्षो में सूर्य की राशि में आता है, लेकिन सूर्य वर्ष में दो बार गुरु की राशि में आता है और यही काल धनु-मलमास व मीन-मलमास के नाम से जाना जाता है।

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