सोमवार, 23 नवंबर 2009

ग्रहों के हाल से जानिए कब्ज का उपचार - पं. पुष्कर राज

कब्ज पेट के रोगों में सबसे आम बीमारी है। पेट का साफ न होना, खुलकर शौच न होना ही कब्ज है। रोग के आरंभ में अपच, आलस्य, सिरदर्द, acidityउल्टी आदि लक्षण प्रकट होते हैं। पानी ज्यादा पीकर व खान-पान में परहेज रखकर इस रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।
ज्योतिषीय कारण: जातक ग्रंथों के अनुसार शरीर में अवरोध का कारक ग्रह शनि है। कन्या और तुला राशि पेट से संबंधित कारक राशियों में गिनी जाती है। छठा भाव भी पेट से ही संबंध रखता है। यदि शनि कर्क, कन्या राशि में या छठे भाव में हो तो निश्चित ही कब्ज करने वाला सिद्ध होगा। कन्या या तुला राशि में अशुभ ग्रह हों तो मलावरोध की शिकायत रहेगी। कन्या या तुला राशि में अशुभ ग्रह हों और षष्ठेश से शनि की युति या दृष्टिगत संबंध हो तो भी जातक कब्ज से पीड़ित होगा। शनि अष्टम भाव में दीर्घायु बनाता है, परंतु पेट के रोग का कारक भी सिद्ध होता है।
उपचार : कब्ज की शिकायत वालों को शनि से संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए। इनमें तिलदान, तेलदान, उड़द की बनी वस्तुएं, काला वस्त्र, छाता, जूते व सिक्के प्रमुख हैं। शनिवार का व्रत और रोजाना ऊं शं शनैश्चराय नम: मंत्र की एक माला संध्याकाल में या रात में आसन पर बैठकर दीपक लगाकर करें। इससे रोग निदान के स्तर तक पहुंचा जा सकेगा। इसके अतिरिक्त सुबह शनि के स्मरण के साथ खाली पेट एक लोटा पानी पीने और खाली पेट ही प्राणायाम करने से भी कब्ज से निजात पाया जा सकता है।

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