शनिवार, 21 नवंबर 2009

दंडाधिकारी शनिदेव

शनि सभी ग्रहों से दूर रहकर तुला राशि को अपना उच्च आसन बनाकर, धर्म-अधर्म को न्याय के तराजू में तौलकर आमजन के लिए दूध का दूध और पानी का पानी कर देते हैं।
शनि ग्रह का नाम सुनते ही प्राय: भय पैदा होने लगता है, जबकि शनि लोकतांत्रिक पद्धति के पालक तथा संसार की हर चल-अचल वस्तु से संबद्ध होने से आमजन का ग्रह है। शनि जयंती ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को आती है।
शनि के जन्म को लेकर अनेक पौराणिक कथाएं हैं। शनिदेव राम, कृष्ण, हनुमान, पार्वती आदि को भी अपना प्रभाव दिखाए बिना नहीं रहे। इन कथाओं में शनिग्रह को नकारात्मक या अनिष्ट कारक ग्रह के रूप में अधिक वर्णित कर दिया गया है, वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है।
शनि नवग्रहों में न्यायाधीश हैं। न्यायाधीश कभी भी किसी व्यक्ति से जल्दी प्रभावित नहीं होते, अपितु दूरियां बनाकर चलते हैं। उसी तरह शनि ग्रह भी सभी ग्रहों से दूर रहकर, तुला राशि को अपना उच्च आसन बनाकर, धर्म-अधर्म को न्याय के तराजू में तौलकर आमजन के लिए दूध का दूध और पानी का पानी कर देते हैं।
शनि ग्रह मानव के अंत:करण का प्रतीक है। चर्म, श्वास, जोड़ों में दर्द, सिरदर्द, रक्त प्रवाह, अपच, कब्ज, मनोरोग, प्रेतबाधा, अंधापन, मुंह एवं अन्य अंगों से दरुगध आदि अनेक विकारों का कारण शनि होता है।
देर तक सोने वाले, जुआ, सट्टा, शराब, शेयर, प्रॉपर्टी, खनिज पदार्थ आदि में भी इनका पूर्ण हस्तक्षेप रहता है। वास्तव में शनि एक गरीब बुजुर्ग ग्रह हैं, जो सदैव आशीर्वाद देने को आतुर रहते हैं, लेकिन लोग उनकी उपेक्षा करके अपने आपको संकट में डालते रहते हैं।
हमारे शरीर में ऑक्सीजन रहित रक्त को ले जाने वाली शिराओं का स्वामी शनि ही होता है। शनि की भूमिका तन-मन एवं धन तीनों में महत्वपूर्ण होती है। मानव जीवन के सारे कष्टों को हरने वाला एकमात्र शनि ग्रह ही है। यह अलग बात है कि शनि को प्राय: क्रूर ग्रह ही माना जाता है, जबकि शनि हर राशि को अपनी तरह से सहयोग करते हैं।
वायु पुत्र हनुमान ने भगवान राम को हरसंभव सहयोग किया, तो आमजन को भी वायुग्रह शनि हमेशा सहयोगी ही बना रहता है। धोखेबाज, चोर, झूठ बोलने वाले, दुराचारी, अपराधी आदि के लिए शनि मारक समान रहता है, तो साधु संतों, विद्वानों तथा सदाचरण से चलने वालों के लिए सेवक स्वरूप प्रबल कारक ग्रह रहता है।
मार्गी शनि
शनि १७ मई से सिंह राशि में मार्गी हुआ है तथा ९ सितंबर २क्क्९ को कन्या राशि में भरणी नक्षत्र एवं मेष राषि के चंद्रमा में प्रवेश करेगा। ९ सितंबर से पहले कर्क, सिंह एवं कन्या राशि को साढ़े साती शनि चल रहा है तथा मकर एवं वृष राषि को ढैय्या शनि है।
९ सितंबर २क्क्९ से सिंह, कन्या एवं तुला को साढ़े साती तथा कुंभ एवं मिथुन का ढैय्या शनि प्रारंभ हो जाएगा। मकर एवं वृष राशि को तो ढैय्या शनि भी तांबे के पाये पर होने से श्रेष्ठ फलदायक है साथ ही आगामी सितंबर से सिंह, तुला, कुंभ एवं मीन राशि को शनि की साढ़े साती एवं ढैय्या लगेगी जो श्रेष्ठ रहेगी।
कर्क, सिंह एवं कन्या राशि वालों को शनि की प्रसन्नता के लिए घर में या अड़ोस-पड़ोस में किसी अशक्त बुजुर्ग की सेवा करनी चाहिए। अपंग लोगों की सेवा एवं आशीर्वाद से भी शनि का दुष्प्रभाव नष्ट होता है। शनिवार के दिन चमेली के तेल का दीपक हनुमान मंदिर में सूर्यास्त के समय जलाने से भी शनिदेव प्रसन्न रहते हैं।
शनि के प्रभाव
शनि की साढ़े साती एवं ढैय्या हमेशा खराब नहीं होती। शनि जिस दिन राशि बदलता है, उस दिन चंद्रमा जिस राशि पर हो उसके आधार पर सोना, चांदी, तांबा, लोहा आदि का पाया देखकर शनि की ढैय्या या साढ़े साती के फल को समझना चाहिए। चांदी एवं तांबे के पाये पर जब भी शनि की पनोती लगती है, तब बहुत अच्छा फल देती है। सोने एवं लोहे में भी प्रारंभ पनोती यदि महादशा और अंतर्दशा अच्छी हो तो कष्टदायक नहीं होती है। इसके बावजूद न जाने क्यों आमजन ने शनि ग्रह को बदनाम कर रखा है।
इस मंत्र के 23क्क्क् जप करने से भी शनि का दुष्प्रभाव समाप्त हो जाता है -
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:॥

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